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अ॒भी᳕मं म॑हि॒मा दिवं॒ विप्रो॑ बभूव स॒प्रथाः॑। उ॒त श्रव॑सा पृथि॒वी सꣳ सी॑दस्व म॒हाँ२ऽ अ॑सि॒ रोच॑स्व देव॒वीत॑मः। वि धू॒मम॑ग्नेऽअरु॒षं मि॑येद्ध्य सृ॒ज प्र॑शस्त दर्श॒तम् ॥१७ ॥

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अ॒भि। इ॒मम्। म॒हि॒मा। दिव॑म्। विप्रः॑। ब॒भू॒व॒। स॒प्रथा॒ इति॑ स॒ऽप्रथाः॑। उ॒त। श्रव॑सा। पृ॒थि॒वीम्। सम्। सी॒द॒स्व॒। म॒हान्। अ॒सि॒। रोच॑स्व। दे॒व॒वीत॑म॒ इति॑ देव॒ऽवीत॑मः। वि। धू॒मम्। अ॒ग्ने॒। अ॒रु॒षम्। मि॒ये॒ध्य॒। सृ॒ज। प्र॒श॒स्त॒। द॒र्श॒तम् ॥१७ ॥

Yajurveda » Adhyay:38» Mantra:17